Friday, 13 April 2018

सरितप्रवाह कृति: हैवानियत की हद हैवानियत की हद हो गई है इंसान की...

सरितप्रवाह कृति:
हैवानियत की हद

हैवानियत की हद हो गई है इंसान की...
: हैवानियत की हद हैवानियत की हद हो गई है इंसान की इंसानियत हाय किस कदर गिर गई है नारी के नाम से ही जैसे आँखों पर पट्टी बंध गई...

हैवानियत की हद


हैवानियत की हद हो गई है
इंसान की इंसानियत
हाय किस कदर गिर गई है
नारी के नाम से ही जैसे
आँखों पर पट्टी बंध गई है
दिल और दिमाग पर ताले लग गए हैं
क्या छोटी हो क्या हो बड़ी
वहशियत की आग
सभी को जला रही है
कैसे निष्ठुर निर्लज प्रवृति है यह
इनकी हैवानियत के हत्थे
मासूमों की आबरू चढ़ रही है
सुना था कभी राक्षसी प्रवृति हुआ करती थी
आज सचमुच साक्षात्कार हो रही है
क्या कसूर था उन मासूमों का
क्या दुनिया में आना ही
मरना ही था आबरू लेकर लुटी हुई
तो इस दुनिया में ही क्यों आती
कोई उनकी भी तो सपने होंगे
कोई उनकी भी तो अरमा होगी
डर लगता है सोच उस दिन को
कहीं ऐसा न हो जाए
एक दिन धरती फट जाए
उस दिन सीता मैया की तरह
नारी जाती भी धरती में समा जाए
आखिर कब तक दर्द सहती रहेगी
कब तक इस आग में जलती रहेगी
अच्छा हो की वक्त से पहले
ही सब कुछ संभल जाए
वरना यह डर व्याप्त है दिल में
वो दिन फिर न लौट आए    

सरिता प्रसाद

Tuesday, 3 April 2018

राम राज्य


राम राज्य
ऐ काश अपने देश में
ऐसा साम्राज्य होता
जैसे राम राज्य होता
सुख शान्ति व्याप्त होती
जनता यहाँ खुश होती
सुशासन सुव्यवस्था से
हर समस्या का अंत होता
न बेरोजगारी होती
न ही भ्रष्टाचार होता
जब जनता सुखी होती
तो न लूट मार होता
आदर्श राज पाट का
जनता पर असर होता
सबकुछ व्यवस्थित होता
विकास सही होता
न नारी अपमानित होती
न ही  बलात्कारी होते
निस्वार्थ सेवा भाव तब
जन –जन में व्याप्त होता
न कुर्सी की खिचा तानी
न नेताओं की मनमानी
राजनीति दाव – पेंच का
न बोल - बाला होता
जब तृप्त होगी जनता
तो अपराध कैसे होगा
ऐ काश अपने देश में
ऐसा साम्राज्य होता
जैसे राम राज्य होता
सरिता प्रसाद