राजनीति
आज कल राजनीति की हवा बह रही है
इलैक्शन का मौसम चल रहा है
सभी प्रत्याशी अपने-अपने हथकंडे लेकर
राजनीति के अखाड़े मे उतर गए हैं
जो पहले से नेता थे वो तो है ही
उनके रिस्ते नाते भी मैदान मे कुद पड़े हैं
परिवार का माहौल ही राजनीति भड़ा है
अपने अपने हाथों में चिन्ह लिए खड़े है
संतान तो संतान नई नवेली दुल्हन को भी
मैदान में खिच खड़े किए है
अपने अपनों से दूर हो गए है
जो दुश्मन था वो दोस्त बन गए हैं
अपने अपनों को अपनी ओर खिच रहे है
पर अपने ही अपनों से दूर भाग रहे हैं
जो कुर्सी पर पहले से बैठा है
कुर्सी बचाने के लिए और और कर रहा है
होर लगी है सभी को कुर्सी की
सभी एक दूसरे की टांग खिच रहे है
सीधे साधे लोगों को भी नहीं
छोड़ रहे है
एक दूसरे की छवि बिगाड़ने मे लगे हैं
जनता परेशान है देखकर इनकी उठा पटक
किधर जाए किसे वोट दे तय नहीं कर पा रही है
कौन कितना कारगर है पहचानना है मुश्किल
कसौटी पर कौन खड़ा उतड़ेगा समझना है मुश्किल
आजकल राजनीति की हवा बह रही है ।
सरिता प्रासद
बढ़िया रचना
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