Tuesday 20 February 2018

सरितप्रवाह कृति: बढ़ता मनोबलबढ़ रहा हैहौसला अबदिन-ब-दिनआतंकवादियों ...

सरितप्रवाह कृति:

बढ़ता मनोबलबढ़ रहा हैहौसला अबदिन-ब-दिनआतंकवादियों ...
: बढ़ता मनोबल बढ़ रहा है हौसला अब दिन-ब-दिन आतंकवादियों का बनाकर हमारी सेना को निशाना रुख कर रहे हैं उनके घरों का हो रहा है छलनी ...

Monday 19 February 2018


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बढ़ता मनोबल
बढ़ रहा है हौसला अब
दिन-ब-दिन आतंकवादियों का
बनाकर हमारी सेना को निशाना
रुख कर रहे हैं उनके घरों का
हो रहा है छलनी सीना
इन हरकतों से जवानों का
ऐसी हरकत परास्त कर रहा
हिम्मत भी हमारे जवानों का
कैसे करेंगें यह सामना
इन आतंकी गतिविधियों का
कैसे डटेंगे यह सीमा पर
साहस और बुलंदी के संग
गिरि हुई इरादों से अपने
कर रहे हैं हमारा जड़ कमजोर
होगा कैसे सुरक्षा देश का
जब रक्षक हो जाए कमजोर
होगा कैसे सुरक्षा देश का
जब रक्षक हो जाए कमज़ोर
चकनाचूर कर रहे है हौसलों का
युद्ध से पूर्व ही कर रहे परास्त
सरिता प्रसाद

Sunday 11 February 2018

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हमारी नई पुस्तक – “सफर के हमसफर”
लेखक – उमेश प्रसाद एवं सरिता प्रसाद
भूमिका
मानव जीवन उतार-चढ़ाव से भरा है। उतार-चढ़ाव से भरे इस जीवन में कभी सफलता तो कभी असफलता, कभी आशा तो कभी निराशा, कभी भावनाओं के तूफान तो कभी आवेश के झंझावात आते रहते हैं। यह जीवन एक सफर ही तो है और इस सफर में अगर हमसफर का सार्थक सहयोग मिलने लगे तो यह सफर सुहाना हो जाता है। पुस्तक सफर के हमसफर में लेखक-लेखिका की जोड़ी ने जैसे जीवन के इस सफर को जीवंत रूप प्रदान कर दिया है। वैसे तो प्रेम कथा आरम्भ से ही हिन्दी साहित्य का पसंदीदा विषय रहा है। चाहे वह बॉलीवुड की फिल्में हो या हिन्दी की कवितायें या कहानियाँ, सभी नायक और नायिका के प्रेम के इर्द-गिर्द रची-बसी होती है। लेकिन हिन्दी साहित्य के इस पारम्परिक प्रेम और सफर के हमसफर के प्रेम में मौलिक अंतर तो प्रेम के स्वरूप में है। जहाँ से पारम्परिक हिन्दी साहित्य का प्रेम समाप्त होता है वहाँ से सफर के हमसफर का प्रेम आरम्भ होता है। आम तौर पर हमारे भारतीय समाज में प्यार का अर्थ नायक-नायिका के कच्चे उम्र के प्यार से है जो दोनों के विवाह-बन्धन तक आते-आते दम तोड़ता नजर आता है। लेकिन सफर के हम सफर का प्रेम तो विवाह के बाद का पति-पत्नी का प्रेम है। जहाँ से प्रेम की अवधारणा हमारे समाज में खत्म होती है वहाँ से इस पुस्तक में इसे आरंभ करने का अद्भुत प्रयास किया गया है। वह प्यार ही तो है जिसकी बदौलत पति-पत्नी साथ-साथ रहते हैं, एक दूसरे के साथ जीवन के संघर्षों का सामना करते हैं, जीवन के विभिन्न उतार-चढ़ाव को झेलते हैं, बच्चों की परवरिश करते हैं और संकट की घड़ी में एक-दूसरे का साथ देते हैं, भले ही वे हिन्दी फिल्मों की पटकथा की भांति एक-दूसरे को आई लव यू बोलते नजर न आते हों। यहाँ नायक-नायिका के कच्चे उम्र का रोमांस नहीं बल्कि पति-पत्नी का परिपक्व और संजीदा प्रेम का सचित्र और सजीव चित्रण किया गया है। कहानी के एक प्रसंग में कहानी का नायक खुद कहता नजर आता है, “हमारा प्यार कॉलेज में पढ़ने वाले लड़के-लड़कियों का थोड़े ही है जो फुस्स बात में टूट जाए, हमारा प्यार तो पति-पत्नी का प्यार है जो अमूर्त है, शाश्वत है। थोड़ी आंधी में तो क्या तूफान के झंझावातों में भी नहीं टूट सकता। हमारा साथ तो सात जन्मों का है
प्रस्तुत पुस्तक में लेखक और लेखिका की इस जोड़ी ने समकालीन समाज में नौकरीपेशा, खासकर घर से बाहर रहकर जॉब करने वालों की जीवन शैली का काफी सटीक और यथार्थ चित्रण करने का सार्थक प्रयास किया है। कहानी का नायक अपने कार्य-क्षेत्र के दवाब में वर्क-लाइफ बैलेन्स को भूल जाता है। फिर मानसिक तनाव, पारिवारिक अशांति और अस्थिरता के घने बादलों के बीच उसे पत्नी का संबल और प्रेम, प्रकाश की किरण की तरह उसका मार्गदर्शन करता नजर आता है। और अंत में जीवन के इस ऊबड़-खाबड़ भरे सड़कों पर हमसफर का साथ जीवन के सफर को एक सुहाने सफर में तब्दील कर देता है।
जीवन के व्यावहारिक पहलुओं का विवेचन पुस्तक को विशेष और रोचक बनाती है। पुस्तक के पात्र, उनका दैनिक जीवन, उनका रोमांस और प्यार, पति-पत्नी के नोक-झोंक और फिर जीवन की वास्तविकता, पुस्तक और इसके पात्रों को जीवंत स्वरूप प्रदान करती है। उपन्यास की मुख्य विशेषता इसमें प्रयुक्त भाषा की सरलता और सहजता है जिसके कारण पुस्तक का हर पाठक अपने-आप को उपन्यास के पात्रों के काफी करीब पाता है और उपन्यास के हीरो-हीरोइन के साथ घटित घटनायें उसके खुद के साथ आत्मसात होती प्रतीत होती है। एक आम आदमी के जीवन के विभिन्न पहलुओं का सटीक और यथार्थ चित्रण, पारिवारिक जीवन में पत्नी की भूमिका की महत्ता और नौकरी-पेशा लोगों के जीवन में वर्क-लाइफ बैलेन्स की अवधारणा की यथार्थ विवेचना के कारण यह पुस्तक आम आदमी, स्टूडेंट्स और खासकर नौकरी पेशा वर्ग के लिए अवश्य पठनीय (Must - Read) है।
शुभकामनाओं सहित;
(राकेश प्रसाद)
सीनियर मैनेजर, यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया,
ज़ोनल ऑडिट ऑफिस, गोमती नगर, लखनऊ


Friday 9 February 2018

आखिर कब तक
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आखिर कब तक ये माताएँ
अपना लाल खोती रहेगी
कब तक ये पत्नियाँ
पति के शहादत पर रोती रहेगी
आखिर कब तक ये बच्चे
पितृ छाया विहीन होते रहेंगें
आतंक परोसी का
दिनोदिन बढ़ रहें है
साहस और तेवर इनके
दिन रात चढ़ रहें हैं
कब तक यूँ ही चलेगा
शिलशिला शहादतों का

एक - एक कर भारत माता
वीर पुत्र खो रही है
रोको विराम लगाओ
कोई तो कदम उठाओ
दुस्साहसियों का साहस
अब और बढ़ने न पाए
इनके कुकृत्यों से पहले हम
कोई ठोस कदम उठाएं
सरिता प्रसाद 

Friday 2 February 2018

सरितप्रवाह कृति: एकता की ताकतएक हीमाटी के बने हैं सभी हिन्दूमुस्...

सरितप्रवाह कृति: एकता की ताकत


एक हीमाटी के बने हैं सभी हिन्दूमुस्...
: एकता की ताकत एक ही माटी के बने हैं सभी हिन्दू मुस्लिम सिख   ईसाई भांति – भांति के धर्म हैं यहाँ भांति – भांति के हैं संस्का...
एकता की ताकत



एक ही माटी के बने हैं सभी
हिन्दू मुस्लिम सिख  ईसाई
भांति – भांति के धर्म हैं यहाँ
भांति – भांति के हैं संस्कार
सबकी रगो में बह रहा है
एक ही रंग के रक्त धार
एक धरा है एक है पानी
एक हवा है एक ही भाषा
रंग रूप सब एक ही जैसे
भेद नहीं जैसे हो भाई – भाई
फिर क्यूँ करते हो आपस में अनबन
एक राष्ट्र है एक तिरंगा
बाँट रहे क्यों तिनका – तिनका
भारत माँ का सभी दुलारा
इनको सभी सपूत है प्यारा
सभी इनके आँखों का तारा
रोता है माता की आँखें  
लड़ते देख अपने सपूतों को
एक ही गृह के हम सब वासी
एक मुट्ठी के हैं अँगुली हम
अलग –अलग गर यह हो जाएँ
एकता की डोर कहाँ रह जाए
मुट्ठी में होती है ताकत
तभी ऊँचा रहता है मस्तक
देखकर, तना हुआ मस्तक
हो जाती है हर मंथरा परास्त
कभी किसी के बहकावे मे न आना
अपनी ताकत को न गवाना
चाहते हैं सभी तोड़ना अपना घर
घर फोरवे से नजर बचाना
और ज्यादा मजबूती घर में लाना
सकारात्मक सोच अपनाकर
एकता को और घनिष्ठ बनाना
ना कभी होगा कोई अनबन
एकता और प्रेम भाव से
घर की नीव को मजबूत बनाना
ना  कोई आँधी इसे उड़ाए
ना कोई तूफान इसे हिलाए
चैन और सुकून प्रेम में है बसता
इसको खोया जीने को तरसता
बहकावे को दिल पे न लाना
भड़कावे को हवा में उड़ाना
प्रेम भाव से मिलजुल कर सब
प्यारा सा एक घर बसाना
इसके आगे नाम पटल पर
प्यारा हिंदूस्तान लिखवाना ।
  
सरिता प्रसाद