Wednesday 6 December 2017
सरितप्रवाह कृति: श्रद्धांजलि
सरितप्रवाह कृति: श्रद्धांजलि: श्रद्धांजलि जीते तो हैं सभी अपने लिए अपनों के लिए ज़िंदगी उन्ही कि मुकम्मल ...
श्रद्धांजलि
श्रद्धांजलि
जीते तो हैं सभी
अपने लिए अपनों के लिए
ज़िंदगी उन्ही कि मुकम्मल होती है
जो कुछ पल जीते हैं औरों के लिए
लम्हा निकल जाता है ज़िंदगी का
यूँ ही चलते सोचते
लम्हा ज़िंदगी का मुकम्मल होता है
उन्ही का
जो कुछ पल सोचते हैं औरों के लिए
जो चार कदम चलते हैं औरों के लिए
धड़कते हैं दिल सभी के अपनों के लिए
विरले ही होते हैं वो जिनके सीने
में
धड़कते हैं दिल औरों के लिए
यादों में सजते हैं वो
जहां से चले जाने के बाद
जुबां पर नाम होता है उन्ही का
रुखसती पाने के बाद
सरिता प्रसाद
Wednesday 29 November 2017
इलेक्शन
आज हमारे देश का,
फिर से माहौल
गरमाया है
क्योंकि इलेक्शन
आया है
छुपकर बैठा था जो
म्यानों मे
निकलकर बाहर आया
है,
धूल पड़ी थी जिन
वादों पर।
झाड़ पोछ चमकाया है
फिर से इलेक्शन
आया है
कसमों वादों की
लड़ी लगी है
नए- नए लोलुपों से
सारा बाजार ही छाया
है
उसी राज्य में
उन्होने अपना घर बनाया है
आज वही इलेक्शन
आया है
पार्टियों ने एक
दूसरे पर
शब्दों के बाण
चलाया है
हर जीत के
रणनीतियों ने
सबका मन भरमाया है
आज फिर से इलेक्शन
आया है
जनता बेचारी
परेशान है
इनके मतलबी इरादों
से
किस पर विश्वास,अविश्वास
करे यह
बड़ा ही असमंजस
छाया है
देखो फिर से
इलेक्शन आया है
सरिता प्रसाद
Tuesday 21 November 2017
सरितप्रवाह कृति: तानाशाह
सरितप्रवाह कृति: तानाशाह: तानाशाही बारूद के ढेर पर बैठकर दूसरों को धमकाना। जंग के इरादे से , दूसरों को भय दिखाना। खुद का तानाशाह दिखाकर , प...
सरितप्रवाह कृति: तानाशाह
सरितप्रवाह कृति: तानाशाह: तानाशाही बारूद के ढेर पर बैठकर दूसरों को धमकाना। जंग के इरादे से , दूसरों को भय दिखाना। खुद का तानाशाह दिखाकर , प...
तानाशाह
तानाशाही
बारूद के ढेर पर बैठकर
दूसरों को धमकाना।
जंग के इरादे से,
दूसरों को भय दिखाना।
खुद का तानाशाह दिखाकर,
परमाणु परीक्षण करना।
आरजू है उन ताकतवर देशों के,
श्रेणी मे अव्वल रहना।
भयंकर रेडियो किरणों से,
पर्यावरण प्रदूषित करना।
तानाशाह का झंडा गारकर,
जंग का इरादा रखना।
बड़ा नागवार है यह हरकत,
तानाशाही राजा का।
बारूद तो आखिर बारूद है,
रच रहा है खुद ही मुसीबत,
कुछ हद तक शुरुआत है यह।
दफन हो गई असंख्य जाने,
परीक्षण निमित्त सुरंग के अंदर।
अब भी समझ जो आ जाए तो,
कदम मोर लेना बेहतर।
तबाही का कारण न बन जाए,
इनकी यह सनकी हरकत।
दफन न हो जाए इनकी सल्तनत,
बारूदी बवंडरों के अंदर।
सरिता प्रसाद
Tuesday 31 October 2017
श्रीमती इन्दिरा गाँधी
श्रीमती इंदिरा गाँधी
वो फौलादी इरादे,
वो देश के निमित्त,
सर्वस्व न्योछावर कर,
अपने देश के स्वाभिमान के,
रक्षक बनकर,
हर महत्वपूर्ण निर्णय लेकर,
देश हित कर्तव्यनिष्ठ,
हर सवाल का सटीक जबाब देकर,
हर तूफानों के आगे,
अडिग रहकर अपने,
मजबूत इरादे और,
लबालब हिम्मत के बल पर,
टूटकर परिस्थितियों के आगे,
फिर से खड़ा होना मजबूत बनकर,
वो भरपूर साहस और विश्वास,
के आधार पर फिर से,
जीत का परचम लहराना।
जिसने अपना सर्वस्व न्योछावर कर,
देश के मस्तक को कभी,
किसी और के आगे झुकने न दिया,
वही तो थी हमारी,
देश की पहली महिला प्रधानमंत्री।
-सरिता प्रसाद-
Friday 27 October 2017
प्यार और एकता का प्रतीक छठ वर्त
प्यार और एकता काप्रतीक छठ पर्व
रिश्तों के सुगंधों
से सुगंधित,
प्यार के रसों से
सराबोर ,
एकता के अद्भुत डोर
मे बंधा,
ईश्वरिए कृपा से ओत –
प्रोत,
आस्था और भक्ति में
लीन,
एक विशाल जन समुदाय,
आखिर कहाँ जा रहा है?
क्या कोई हीरा मोती,
या कोई धन संपदा,
प्राप्त करने जा रहा
है।
नहीं – नहीं कुछ भी
नहीं,
यह तो सूर्य देव की
अद्भुत शक्ति है,
जो पहली किरण के रूप
में,
एक विशाल जन समुदाय
को,
अपनी ओर खिंच रहा है।
प्यार और एकता के डोर
में बंधे,
त्रिदिवसीय उपासक
इश्वरिए भक्ति में लीन,
प्रभु कि एक कृपा एक
दरश पाने हेतु,
एक विशाल जन समुदाय
गंगा तट पर,
अस्ताचलगामी उदयगामी
सूर्य के अद्भुत दर्शन कर,
छठ माता स्वरूप ईश्वर
को अर्घ्य चढ़ाने जा रहा है।
उस महान प्रभु के
कृपा से कृत –कृत होकर
एक विशाल जन समुदाय
प्रेम और एकता के प्रतीक,
इस महान शुद्ध
सात्विक त्योहार पर अपने परिवार,
के शुभ कामनाओं के
साथ सारे भेद - भाव छोड़कर
प्रेम और एकता के डोर
मे बंधने जा रहा है ।
सरिता प्रसाद
Thursday 14 September 2017
साधु या ढोंगी
साधु या
ढोंगी
साधु संत का चोला पहनकर,
धर्म का आडम्बर रचनेवाले।
धर्म की आर में छुपकर,
भ्रष्ट कर्म करने वाले ।
ढोंगी जो देश का कलंक है,
भोली - भाली जनता को,
बरगलाकर मीठी बोल बोलकर,
धर्म रूपी नकाब पहनाकर,
उनके भावनाओं से खेलनेवाले।
जनता के द्वारा दिये हुए पैसे से,
जनता को ठगकर राज करनेवाले।
जनता के वक्त भावनाओं और,
उनके पैसों से खेलने वाले।
धर्म के नाम पर अपनी सुरक्षा हेतु,
विरोधी फौज खड़ी करनेवाले।
देश में अराजकता फैलानेवाले।
अपने ऐशो आराम अपने शौक हेतु,
चेहरे पर धर्म रूपी मुखौटे लगाकर,
भोली – भाली जनता को ठगनेवाले।
बनते हैं धर्मनिष्ठ अंत:पुर को,
भगवान का गृह बताकर,
भगवान के रूप का ढोंग रचाकर,
नारियों के अस्मत से खेलनेवाले।
इस देश में रहकर बहू बेटियों पर,
अपनी बुरी निगाह रखने वाले ।
धर्म के नाम को बदनाम करनेवाले।
देश से ऐसे दरिंदों का खात्मा करना
होगा ।
इनको इनके किए का सजा भुगतना होगा ।
तभी हमारे देश से ऐसे अराजक तत्वों
का,
पूर्ण रुपेऐसे कचड़ों का सफाया कर,
देश सही रूप से,
स्वच्छता अभियान में सफल होगा।
सरिता प्रसाद
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Tuesday 20 June 2017
हार-जीत
हार-जीत
आज लोगों ने खेल को,
खेल नहीं एक युद्ध बना डाला है ।
खेल का मैदान खेल का मैदान नही ,
युद्ध का मैदान बना डाला है ।
खिलाड़ी बेचारा क्या करे ,
खेल तो हमेशा हार जीत का होता है ।
इसे इसी रूप मे न देख कर ,
हजारों उम्मीद इससे पाल लेते हैं ।
अपेक्षाएँ इतनी जबरदस्त होती है ,
इसकी जैसे कोई सीमा नही ।
परिस्थितियाँ चाहे जो हो ,
पिच पर जाकर कोई समझे ,
परिस्थिति क्या होती है ।
न जाने कितने विज्ञापन ,
बढ़ा चढ़ा कर पेश करना ,
मिडिया का भी एक अपना ही रंग है ।
वक्त से पहले ही जीत का जश्न मनाना ,
ये सबसे बड़ी लापरवाही है ।
कर्म किया नही उसका गुणगान ,
शुरू हो जाती है ।
जो अच्छा करेगा अच्छा पाएगा ,
मेहनत करेगा तो फल पाएगा ,
यही तो अटल सत्य है ।
सबसे पहले खेल को खेल समझो ,
हार जीत का सम्मान करो ,
फिर जाकर जीतने वाले का गुणगान करो ।
तभी तो जीत रंग लाएगा ,
जश्न जीत का मनाने मे मजा आयेगा ।
खामखा इन हरकतों पर ,
खिल्लिया उड़ाए जाते हो ।
हार जाने पर ,
औंधे मुह लौट आते हो ।
खेल का मैदान खेल का मैदान नही ,
युद्ध का मैदान बना डाला है ।
खिलाड़ी बेचारा क्या करे ,
खेल तो हमेशा हार जीत का होता है ।
इसे इसी रूप मे न देख कर ,
हजारों उम्मीद इससे पाल लेते हैं ।
अपेक्षाएँ इतनी जबरदस्त होती है ,
इसकी जैसे कोई सीमा नही ।
परिस्थितियाँ चाहे जो हो ,
पिच पर जाकर कोई समझे ,
परिस्थिति क्या होती है ।
न जाने कितने विज्ञापन ,
बढ़ा चढ़ा कर पेश करना ,
मिडिया का भी एक अपना ही रंग है ।
वक्त से पहले ही जीत का जश्न मनाना ,
ये सबसे बड़ी लापरवाही है ।
कर्म किया नही उसका गुणगान ,
शुरू हो जाती है ।
जो अच्छा करेगा अच्छा पाएगा ,
मेहनत करेगा तो फल पाएगा ,
यही तो अटल सत्य है ।
सबसे पहले खेल को खेल समझो ,
हार जीत का सम्मान करो ,
फिर जाकर जीतने वाले का गुणगान करो ।
तभी तो जीत रंग लाएगा ,
जश्न जीत का मनाने मे मजा आयेगा ।
खामखा इन हरकतों पर ,
खिल्लिया उड़ाए जाते हो ।
हार जाने पर ,
औंधे मुह लौट आते हो ।
Monday 5 June 2017
जीत
जीत
धुआँधार खेलकर ,रणबांकुरों ने रण मे ।रौंध डाला विरोधी के अभिमान को ।फन उठाकर खड़ा रहता है जो हरपल ,
रौंध डाला उस फन के शान को ।बार बार डसना है फिदरत जिसका ,
अब भी तो संभल जाओ ।देखकर सामने वाले कि ताकत ,
अब तो पीछे हट जाओ ।क्यों करते हो जोरा - जोरी ,
समेट लो अपने हाथों - पैरों को
।हम मे दम है जिसके हर दम में दम है ।समझ ले इसके मान को ।शांति मार्ग से तु भी जी ले ,
हमको भी जी लेने दे ।काट के सिर को क्या सुखी रहोगे ,
सुख तो है सौहार्द में ।प्यार से जी ले प्यार से रह ले ,
छोड़ दे झुठी शान को ।अपना तो कर्म और धर्म यही है ,
शांति और सौहार्द का । ,
अगर जो देखा बुरी नजर से ,
उनका हाल बुरा कर देते हैं ।ज्ञात न हो औकात जो उसको ,
औकात याद दिला देते हैं ।
सरिता प्रसाद
5-06-2017
Thursday 6 April 2017
Wednesday 15 March 2017
राजनीति
आज कल राजनीति की हवा बह रही है
इलैक्शन का मौसम चल रहा है
सभी प्रत्याशी अपने-अपने हथकंडे लेकर
राजनीति के अखाड़े मे उतर गए हैं
जो पहले से नेता थे वो तो है ही
उनके रिस्ते नाते भी मैदान मे कुद पड़े हैं
परिवार का माहौल ही राजनीति भड़ा है
अपने अपने हाथों में चिन्ह लिए खड़े है
संतान तो संतान नई नवेली दुल्हन को भी
मैदान में खिच खड़े किए है
अपने अपनों से दूर हो गए है
जो दुश्मन था वो दोस्त बन गए हैं
अपने अपनों को अपनी ओर खिच रहे है
पर अपने ही अपनों से दूर भाग रहे हैं
जो कुर्सी पर पहले से बैठा है
कुर्सी बचाने के लिए और और कर रहा है
होर लगी है सभी को कुर्सी की
सभी एक दूसरे की टांग खिच रहे है
सीधे साधे लोगों को भी नहीं
छोड़ रहे है
एक दूसरे की छवि बिगाड़ने मे लगे हैं
जनता परेशान है देखकर इनकी उठा पटक
किधर जाए किसे वोट दे तय नहीं कर पा रही है
कौन कितना कारगर है पहचानना है मुश्किल
कसौटी पर कौन खड़ा उतड़ेगा समझना है मुश्किल
आजकल राजनीति की हवा बह रही है ।
सरिता प्रासद
Saturday 4 February 2017
आशा की किरण
आशा
की किरण:
निराश
न करना इनको
तुझसे
बहुत आश लगाए बैठे है
जले
हुए है परिस्थितियों के
जुझते
चले आ रहे हैं।
बेवफाइयों
के जहर पीकर
किसी
प्रकार ज़िंदा है ये
तु
ही आशा की किरण हो
तुझ
पर ही आश लगाए बैठे हैं।
चिराग
जला दो अँधियारों मे
दूर
भगा दो अँधियारों को
सिसकती
साँसो को राहत दे दो
बैठे
हो सरताज लगाए हुए
बहुत
जिम्मेदारियाँ निभानी है
तुझे
देश
की नईया मझधार में है
इसे
बचाकर पार लगानी है तुझे
अँधियारों
को दूर कर उजियारा लानी है
तुझे
इस
देश को बचानी है तुझे
ताज
की लाज निभानी है तुझे ।
सरिता
प्रसाद
04-02-2017
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