सरितप्रवाह कृति:
हैवानियत की हद
हैवानियत की हद हो गई है इंसान की...: हैवानियत की हद हैवानियत की हद हो गई है इंसान की इंसानियत हाय किस कदर गिर गई है नारी के नाम से ही जैसे आँखों पर पट्टी बंध गई...
Friday 13 April 2018
हैवानियत की हद
हैवानियत की हद हो गई है
इंसान की इंसानियत
हाय किस कदर गिर गई है
नारी के नाम से ही जैसे
आँखों पर पट्टी बंध गई है
दिल और दिमाग पर ताले लग गए हैं
क्या छोटी हो क्या हो बड़ी
वहशियत की आग
सभी को जला रही है
कैसे निष्ठुर निर्लज प्रवृति है यह
इनकी हैवानियत के हत्थे
मासूमों की आबरू चढ़ रही है
सुना था कभी राक्षसी प्रवृति हुआ करती थी
आज सचमुच साक्षात्कार हो रही है
क्या कसूर था उन मासूमों का
क्या दुनिया में आना ही
मरना ही था आबरू लेकर लुटी हुई
तो इस दुनिया में ही क्यों आती
कोई उनकी भी तो सपने होंगे
कोई उनकी भी तो अरमा होगी
डर लगता है सोच उस दिन को
कहीं ऐसा न हो जाए
एक दिन धरती फट जाए
उस दिन सीता मैया की तरह
नारी जाती भी धरती में समा जाए
आखिर कब तक दर्द सहती रहेगी
कब तक इस आग में जलती रहेगी
अच्छा हो की वक्त से पहले
ही सब कुछ संभल जाए
वरना यह डर व्याप्त है दिल में
वो दिन फिर न लौट आए
सरिता प्रसाद
Tuesday 3 April 2018
राम राज्य
राम
राज्य
ऐ काश
अपने देश में
ऐसा
साम्राज्य होता
जैसे राम
राज्य होता
सुख
शान्ति व्याप्त होती
जनता यहाँ
खुश होती
सुशासन
सुव्यवस्था से
हर समस्या
का अंत होता
न
बेरोजगारी होती
न ही
भ्रष्टाचार होता
जब जनता
सुखी होती
तो न लूट
मार होता
आदर्श राज
पाट का
जनता पर असर
होता
सबकुछ
व्यवस्थित होता
विकास सही
होता
न नारी
अपमानित होती
न ही बलात्कारी होते
निस्वार्थ
सेवा भाव तब
जन –जन
में व्याप्त होता
न कुर्सी
की खिचा तानी
न नेताओं
की मनमानी
राजनीति
दाव – पेंच का
न बोल - बाला
होता
जब तृप्त
होगी जनता
तो अपराध
कैसे होगा
ऐ काश
अपने देश में
ऐसा
साम्राज्य होता
जैसे राम
राज्य होता
सरिता
प्रसाद
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