Thursday 19 July 2018

मेरे अल्फाज़

आओ ठोस कदम उठाएँ हम

Sarita Prasad
3 कविताएं
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आओ ठोस कदम उठाएँ हम
टूट जाए वो क्रूर हाथ, उठने से पहले
सहम जाए वो, वहशी नजर डालने से पहले
अस्तित्व ही, मिटा डालो उनका
इस धरती पर बोझ हैं ये
नारी जाति को जो देखते हैं
ऐसी घृणित निगाहों से
बार – बार ही क्यों आखिर
ऐसा सुनने में आता है
फिर लुट गई आज एक नारी
फिर एक ने अस्मत खोया
असुरक्षित हैं बेटियाँ आज भी
कठोर कानून बनने पर भी
वहशियों को कहाँ आज भी
रत्ती भर भय सताता है
हर दो चार वही वाकया
फिर से सुनने में आता है
आखिर अब इस दरिंदगी का
सही इनाम क्या होगा
आज नहीं हम संभले अगर तो
कल अंजाम क्या होगा
जब भी कोई जिद्दी बीमारी
शरीर में घर कर जाता है
रोग प्रतिरोधक क्षमताएँ मिलकर ही
उस रोग को दूर भगाता है
एकता की ताकत के बल पर
एक ठोस कदम उठाएँ हम
इतने भयग्रस्त हो जाएँ ये
गिरी सोच रखने वाले
ऐसी नीच हरकत करने से पहले ही इनकी,
भय से रूह काँप जाए

- सरिता प्रसाद

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