Sunday 11 February 2018

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हमारी नई पुस्तक – “सफर के हमसफर”
लेखक – उमेश प्रसाद एवं सरिता प्रसाद
भूमिका
मानव जीवन उतार-चढ़ाव से भरा है। उतार-चढ़ाव से भरे इस जीवन में कभी सफलता तो कभी असफलता, कभी आशा तो कभी निराशा, कभी भावनाओं के तूफान तो कभी आवेश के झंझावात आते रहते हैं। यह जीवन एक सफर ही तो है और इस सफर में अगर हमसफर का सार्थक सहयोग मिलने लगे तो यह सफर सुहाना हो जाता है। पुस्तक सफर के हमसफर में लेखक-लेखिका की जोड़ी ने जैसे जीवन के इस सफर को जीवंत रूप प्रदान कर दिया है। वैसे तो प्रेम कथा आरम्भ से ही हिन्दी साहित्य का पसंदीदा विषय रहा है। चाहे वह बॉलीवुड की फिल्में हो या हिन्दी की कवितायें या कहानियाँ, सभी नायक और नायिका के प्रेम के इर्द-गिर्द रची-बसी होती है। लेकिन हिन्दी साहित्य के इस पारम्परिक प्रेम और सफर के हमसफर के प्रेम में मौलिक अंतर तो प्रेम के स्वरूप में है। जहाँ से पारम्परिक हिन्दी साहित्य का प्रेम समाप्त होता है वहाँ से सफर के हमसफर का प्रेम आरम्भ होता है। आम तौर पर हमारे भारतीय समाज में प्यार का अर्थ नायक-नायिका के कच्चे उम्र के प्यार से है जो दोनों के विवाह-बन्धन तक आते-आते दम तोड़ता नजर आता है। लेकिन सफर के हम सफर का प्रेम तो विवाह के बाद का पति-पत्नी का प्रेम है। जहाँ से प्रेम की अवधारणा हमारे समाज में खत्म होती है वहाँ से इस पुस्तक में इसे आरंभ करने का अद्भुत प्रयास किया गया है। वह प्यार ही तो है जिसकी बदौलत पति-पत्नी साथ-साथ रहते हैं, एक दूसरे के साथ जीवन के संघर्षों का सामना करते हैं, जीवन के विभिन्न उतार-चढ़ाव को झेलते हैं, बच्चों की परवरिश करते हैं और संकट की घड़ी में एक-दूसरे का साथ देते हैं, भले ही वे हिन्दी फिल्मों की पटकथा की भांति एक-दूसरे को आई लव यू बोलते नजर न आते हों। यहाँ नायक-नायिका के कच्चे उम्र का रोमांस नहीं बल्कि पति-पत्नी का परिपक्व और संजीदा प्रेम का सचित्र और सजीव चित्रण किया गया है। कहानी के एक प्रसंग में कहानी का नायक खुद कहता नजर आता है, “हमारा प्यार कॉलेज में पढ़ने वाले लड़के-लड़कियों का थोड़े ही है जो फुस्स बात में टूट जाए, हमारा प्यार तो पति-पत्नी का प्यार है जो अमूर्त है, शाश्वत है। थोड़ी आंधी में तो क्या तूफान के झंझावातों में भी नहीं टूट सकता। हमारा साथ तो सात जन्मों का है
प्रस्तुत पुस्तक में लेखक और लेखिका की इस जोड़ी ने समकालीन समाज में नौकरीपेशा, खासकर घर से बाहर रहकर जॉब करने वालों की जीवन शैली का काफी सटीक और यथार्थ चित्रण करने का सार्थक प्रयास किया है। कहानी का नायक अपने कार्य-क्षेत्र के दवाब में वर्क-लाइफ बैलेन्स को भूल जाता है। फिर मानसिक तनाव, पारिवारिक अशांति और अस्थिरता के घने बादलों के बीच उसे पत्नी का संबल और प्रेम, प्रकाश की किरण की तरह उसका मार्गदर्शन करता नजर आता है। और अंत में जीवन के इस ऊबड़-खाबड़ भरे सड़कों पर हमसफर का साथ जीवन के सफर को एक सुहाने सफर में तब्दील कर देता है।
जीवन के व्यावहारिक पहलुओं का विवेचन पुस्तक को विशेष और रोचक बनाती है। पुस्तक के पात्र, उनका दैनिक जीवन, उनका रोमांस और प्यार, पति-पत्नी के नोक-झोंक और फिर जीवन की वास्तविकता, पुस्तक और इसके पात्रों को जीवंत स्वरूप प्रदान करती है। उपन्यास की मुख्य विशेषता इसमें प्रयुक्त भाषा की सरलता और सहजता है जिसके कारण पुस्तक का हर पाठक अपने-आप को उपन्यास के पात्रों के काफी करीब पाता है और उपन्यास के हीरो-हीरोइन के साथ घटित घटनायें उसके खुद के साथ आत्मसात होती प्रतीत होती है। एक आम आदमी के जीवन के विभिन्न पहलुओं का सटीक और यथार्थ चित्रण, पारिवारिक जीवन में पत्नी की भूमिका की महत्ता और नौकरी-पेशा लोगों के जीवन में वर्क-लाइफ बैलेन्स की अवधारणा की यथार्थ विवेचना के कारण यह पुस्तक आम आदमी, स्टूडेंट्स और खासकर नौकरी पेशा वर्ग के लिए अवश्य पठनीय (Must - Read) है।
शुभकामनाओं सहित;
(राकेश प्रसाद)
सीनियर मैनेजर, यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया,
ज़ोनल ऑडिट ऑफिस, गोमती नगर, लखनऊ


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