हैवानियत की हद
हैवानियत की हद हो गई है
इंसान की इंसानियत
हाय किस कदर गिर गई है
नारी के नाम से ही जैसे
आँखों पर पट्टी बंध गई है
दिल और दिमाग पर ताले लग गए हैं
क्या छोटी हो क्या हो बड़ी
वहशियत की आग
सभी को जला रही है
कैसे निष्ठुर निर्लज प्रवृति है यह
इनकी हैवानियत के हत्थे
मासूमों की आबरू चढ़ रही है
सुना था कभी राक्षसी प्रवृति हुआ करती थी
आज सचमुच साक्षात्कार हो रही है
क्या कसूर था उन मासूमों का
क्या दुनिया में आना ही
मरना ही था आबरू लेकर लुटी हुई
तो इस दुनिया में ही क्यों आती
कोई उनकी भी तो सपने होंगे
कोई उनकी भी तो अरमा होगी
डर लगता है सोच उस दिन को
कहीं ऐसा न हो जाए
एक दिन धरती फट जाए
उस दिन सीता मैया की तरह
नारी जाती भी धरती में समा जाए
आखिर कब तक दर्द सहती रहेगी
कब तक इस आग में जलती रहेगी
अच्छा हो की वक्त से पहले
ही सब कुछ संभल जाए
वरना यह डर व्याप्त है दिल में
वो दिन फिर न लौट आए
सरिता प्रसाद
No comments:
Post a Comment