Wednesday 8 August 2018

निर्वासित


निर्वासित
आज अपने ही देश में
बेगाने हो गए हैं
कभी अपने थे जो
आज पराए हो गए हैं
बस्ती थी कभी
बड़े ही प्यार से रहते थे
दिलो जान से जिसे
अपना समझते थे
आज अचानक एक झटके में
सब बेगाने हो गए हैं
मिट गए निशान जो कभी थे
रेत पर सागर के लहरों के
अब तो यहीं ठिकाना है अपना
अब तो यहीं बसेरा है अपना
रोकना था उस दिन
सीमा पर कदम रखने से पहले
टोकना था उस दिन बस्ती बसाने से पहले
आखिर अब हम कहाँ जाएँ
कहाँ अपनी गृहस्थी बसाएँ
हजारों सवाल के घेरे में फंसे हैं हम
बेगाने तो हो ही गए थे
देश से निर्वासित भी होने को हैं हम
सरिता प्रसाद


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